बिरसा मुंडा जन्मदिन । बिरसा मुंडा बायोग्राफी । बिरसा मुंडा पर निबंध । - All rounder solver

 

बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवंबर 1875 को झारखंड के रांची जिला में हुआ था।इनके पिता का नाम सुगना मुंडा था।वे गरीब किसान थे।पांच वर्ष की उम्र में वे ननिहाल चले गए वहीं से वे मौसी के यहां खट्वांग कजल गए।यहीं से एक ईसाई धर्मप्रचारक के संपर्क में आए और पढ़ना लिखना सीखा।उनके गुरु का नाम आनंद पांडेय था।उनके संपर्क में आकर वे सनातन धर्म तथा देवी-देवताओ के बारे में ज्ञान प्राप्त किया।पुनः एक जर्मन पादरी के संपर्क में यह बारनो गए और 1890 को उच्च प्राथमिक स्तर की परीक्षा में सफलता प्राप्त की।इस प्रकार इन पर ईसाई और सनातन धर्मो का प्रभाव पड़ा।

बिरसा सामान्य आदिवासियों की तरह ही निर्धन थे।जिन्हें कहना भी मुश्किल से मिलता था।बिरसा को अपने भाइयों की दुर्दशा एवं जमींदारी के अत्याचारों को देखकरबहुत दुख होता था।एक बार इन्हें जब समाज से बहिस्कृत किया गया,तो जंगल में चले गए और शांति की तलाश में चिंतन औए संतो के साथ भजन-कीर्तन शुरू किया।उसकी वाणी एवं भजन से युवक वर्ग आकर्षित हुआ।भजन के बाद वे धर्म चर्चा करते थे और कहते थे कि परोपकार ही सच्चा धर्म है।वे नशा ण्य करने पर भी ज़ोर देते थे।जब-जब महामारी फैली तब-तब इन्होंने लोगो कु अथक सेवा की।इनकी ख्याति दूर-दूर तक फैल गई और लोग इनका आशीर्वाद पाने के लिए टूटने लगे।

बिरसा के प्रभाव से ईसाई मिशनरियों को भी चिंता हुई और सरकार को भी,क्योंकि उनके उपदेशो में सरकार विरोधी भावना भी थी।25 दिसम्बर 1899 को उन्होंने विद्रोह प्रारम्भ किया।रांची में जर्मन मिशन पर हमला हुआ,सोनपुर में सीज़र और बोर्गो में सिपाही,चौकीदार मारे गए।रांची और खूंटी में आतंक छा गया।सरकार ने कमर कसी।डोम्बारी में सेकड़ो को पुलिस ने मारा।300 लोग बंदी बनाए गए।बिरसा चक्रधरपुर के जंगलों में चले गए। सरकार की दाल ना गली। लेकिन विश्वास घातीयों ने बिरसा मुंडा को 3 मार्च 1900 में पकड़वा दिया। बिरसा मुंडा एवं उनके साथियों पर मुकदमा चलाया गया। इसी बीच 8 जून,1909 ई० को बिरसा मुंडा चल बसे।

बिरसा आंदोलन का व्यापक प्रभाव पड़ा। इससे जनजंतियों को लगा कि वे अपनी समस्याओं का समाधान राजनीतिक स्वतंत्रता प्राप्त करके के ही कर सकते है। चर्च,सामंतवाद और अंग्रेज़ नोकरशाही का पर्दाफाश हुआ।चोट नागपुर में काश्तकारी कानून पास हुआ और जनजंतियों की पुश्तैनी भूमि अधिकारों को मान्यता मिली।

आज बिरसा मुंडा भौतिक रूप से भले ही मौजूद नही है।लेकिन उनकी भावनाओं तथा कार्यों से भगवान की संज्ञा दी गई है इनकी अद्भुत कीर्तियाँ आज भी जनजंतियों में जागृति पैदा कर रहीं है।

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