धनतेरस- जानिए धनतेरस के पीछे का रहस्य । केसे मनाए धनतेरस ,क्यों मनाया जाता है धनतेरस ,धनतेरस के महत्व
धनतेरस,यह पर्व दीपावली से एक दिन पहलें मनाई जाती है। यह कार्तिक मास के कृष्णपक्ष के त्रयोदशी के दिन मनाया जाता है, पुराणों के अनुसार इसी दिन समुद्रमंथन से भगवान विष्णु के अवतार भगवान धन्वंतरि का जन्म हुआ।इन्हीं के जन्म दिन के रूप में धनतेरस के पर्व मनाया जाता है। इन्हें "औषधि का देवता "भी माना जाता है।इस दिन सभी लोग नए-नए बर्तन,सोने के सिक्के,ज़ेवर,इत्यादि चीज़े खरीदते है। इस दिन नई चीज़े खरीदना शुभ माना जाता है।
इन्हें आयुर्वेद के देव भी माना जाता है,इस दिन को लेकर कई प्रथाएं और कई रीति-रिवाज है उनमें से एक में ऐसा मन जाता है कि धनतेरस के दिन शाम को दक्षिण दिशा की और दिप जलाकर यमदेव के नाम से पूजन करने से मनुष्य अकाल मृत्यु दोष से मुक्त होता है, इसके पीछे एक पौराणिक कथा है,कथा के अनुसार किसी समय में एक राजा थे जिनका नाम हेम था। दैव कृपा से उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। ज्योंतिषियों ने जब बालक की कुण्डली बनाई तो पता चला कि बालक का विवाह जिस दिन होगा उसके ठीक चार दिन के बाद वह मृत्यु को प्राप्त होगा। राजा इस बात को जानकर बहुत दुखी हुआ और राजकुमार को ऐसी जगह पर भेज दिया जहां किसी स्त्री की परछाई भी न पड़े। दैवयोग से एक दिन एक राजकुमारी उधर से गुजरी और दोनों एक दूसरे को देखकर मोहित हो गये और उन्होंने गन्धर्व विवाह कर लिया।
विवाह के पश्चात विधि का विधान सामने आया और विवाह के चार दिन बाद यमदूत उस राजकुमार के प्राण लेने आ पहुंचे। जब यमदूत राजकुमार प्राण ले जा रहे थे उस वक्त नवविवाहिता उसकी पत्नी का विलाप सुनकर उनका हृदय भी द्रवित हो उठा। परन्तु विधि के अनुसार उन्हें अपना कार्य करना पड़ा। यमराज को जब यमदूत यह कह रहे थे, उसी समय उनमें से एक ने यम देवता से विनती की- हे यमराज! क्या कोई ऐसा उपाय नहीं है जिससे मनुष्य अकाल मृत्यु से मुक्त हो जाए। दूत के इस प्रकार अनुरोध करने से यम देवता बोले, हे दूत! अकाल मृत्यु तो कर्म की गति है, इससे मुक्ति का एक आसान तरीका मैं तुम्हें बताता हूं, सो सुनो। कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी रात जो प्राणी मेरे नाम से पूजन करके दीपमाला दक्षिण दिशा की ओर भेट करता है, उसे अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता है। यही कारण है कि लोग इस दिन घर से बाहर दक्षिण दिशा की ओर दीप जलाकर रखते है।
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